आमलकी एकादशी

 

आमलकी एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

विधि
स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूरा हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें। संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें।

भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें। कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें। कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं। अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।

द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें। पश्चिमी राजस्थान में आंवला वृक्ष नही होने पर औरते खेजड़ी वृक्ष की पुजा करती हैं|

आमलकी एकादशी व्रत कथा

ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को जानने के लिए परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी थी। उनकी भक्ति देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए। उन्हें देखते ही भगवान ब्रह्मा के नेत्रों से आंसुओं कीधारा निकल पड़ी जो नारायण के चरणों पर गिर रहे थे। माना जाता है कि भगवान विष्णु के चरणों पर गिरने के बाद ये आंसू आंवले के पेड़ में तब्दील हो गए थे। इसके बाद ही भगवान विष्णु ने कहा कि आज से ये वृक्ष और इसका फल मुझे अत्यंत प्रिय होगा। जो भी भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत तरीके से करेगा, वो साक्षात मेरी पूजा होगी। इसके साथ ही उसको हर पाप से मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

आमलकी एकादशी महत्व
आमलकी का मतलब आंवला होता है। पद्म पुराण के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु का प्रिय माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता है। जिस वजह से आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

इस दिन आंवले का उबटन लगाने,
आंवले के जल से स्नान करने,
आंवला पूजन करने,
आंवले का भोजन करने और आंवले का दान करने की सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि समस्त यज्ञों के बराबर फल देने वाले आमलकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म एकादशी के व्रत का खास महत्व है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशीको आमलकी एकादशी पड़ती है। इसे आंवला और रंगभरनी एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के साथ ही आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।

इस दिन गणेशजी की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। इस व्रत सुफल हो जाता है। इसके लिए पहले गणेशजी को स्नान कराना चाहिए। फिर हार-फूल, जनेऊ, नए वस्त्र अर्पित करके दूर्वा चढ़ाएं और श्री गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें। इस भगवान गणेश प्रसन्न होकर मनचाही मुराद पूरी करते हैं।