मंगल-भवन-अमंगल-हारी-द्रबहु-सुदसरथ-अचर-बिहारी

मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी


अर्थ : जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है , वो दशरथ नंदन श्री राम है वो मुझपर अपनी कृपा करे।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥


अर्थ : जो भगवान श्री राम ने पहले से ही रच रखा है ,वही होगा | हम्हारे कुछ करने से वो बदल नही सकता।


हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी


अर्थ : बुरे समय में यह चार चीजे हमेशा परखी जाती है , धैर्य , मित्र , पत्नी और धर्म।


 जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू


अर्थ : सत्य को कोई छिपा नही सकता , सत्य का सूर्य उदय जरुर होता है।


हो, जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी


अर्थ : जिनकी जैसी प्रभु के लिए भावना है उन्हें प्रभु उसकी रूप में दिखाई देते है।


रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई


अर्थ : रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्व दिया गया है।


हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता


अर्थ : प्रभु श्री राम भी अंनत हो और उनकी कीर्ति भी अपरम्पार है ,इसका कोई अंत नही है। बहुत सारे संतो ने प्रभु की कीर्ति का अलग अलग वर्णन किया है।

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