कामदा एकादशी का व्रत

आज चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस एकादशी तिथि को कामदा एकादशी के रूप में जाना जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि जिस एकादशी तिथि के व्रत से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाए उसे कामदा एकादशी कहते हैं। जैसा कि हम पहले बहुत बार बता चुके हैं कि एकादशी का व्रत भगवान नारायण के निमित्त रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान् नारायण का पूजन, अर्चन और स्तवन करने से वे प्रसन्न होते हैं और उपासक को सभी पापों से मुक्त कर देते हैं।

कामदा एकादशी के व्रत में इन बातों का रखें विशेष ध्यान:

व्रत करने वाले उपासक को इस दिन लकड़ी का दातुन व पेस्ट का उपयोग नहीं करना चाहिए। इनकी जगह पर नींबू, जामुन अथवा आम के पत्ते लेकर चबा लें और पानी से गला साफ कर लें। उपासक को वृक्ष से स्वयं पत्ते नहीं तोड़ने हैं। स्वयं गिरे हुए पत्तों का ही सेवन करें। यदि आपके आसपास पत्ते उपलब्ध न हों तो जल से बारह बार कुल्ला कर लें।

कामदा एकादशी के व्रत की विधि:

कामदा एकादशी के व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच एवं स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ़ वस्त्र धारण करें। उसके बाद गीता का पाठ करें या किसी दूसरे के श्रीमुख से सुन लें। तत्पश्चात उपासक पुष्प, धूप आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करे।
अद्य स्थित्वा निराहारः, सर्वभोगविवर्जितः।
श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष
शरणं मे भवाच्युत।
अर्थात हे कमलनयन भगवान नारायण ! आज मैं सब भोगों से अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूँगा । अच्युत ! आप मुझे शरण दें ।
भगवान श्री विष्णु के सम्मुख संकल्प करें कि आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊँगा। गौ, ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुँगा।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूंगा, ऐसी प्रतिज्ञा करके श्री विष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि हे त्रिलोकपति मेरी लाज आपके हाथ है, अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।
पूरे दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की श्रद्धाभाव से आराधना करनी चाहिए।

कामदा एकादशी के व्रत की कथा

वैसे तो कामदा एकादशी के व्रत की अनेक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन जो मुख्य कथा प्रचलन में है उसका उल्लेख हम यहां कर रहे हैं।
कहते हैं कि प्राचीन काल में रघुकुल में उत्पन्न हुए राजा दिलीप ने भी इस एकादशी के व्रत का माहात्म्य अपने गुरु वशिष्ठ से सुना था। गुरु ने उन्हें बताया था कि एक बार राजा पुंडरीक किसी के श्राप से मनुष्य से राक्षस बन गया था। उस राजा की पत्नी ने चैत्र एकादशी का व्रत रखकर भगवान् नारायण से प्रार्थना की थी कि मेरे इस व्रत का फल मेरे पति को प्राप्त हो जाये। भगवान् नारायण ने पत्नी के व्रत का फल उसके राक्षस बन चुके पति राजा पुंडरीक को दे दिया जिससे वह राक्षस से एक बार फिर से राजा बन गया। इस व्रत के विषय में यह भी कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से उपासक ब्रह्म हत्या जैसे पापों से और पिशाच योनि से भी मुक्त हो जाता है।

विष्णु मंत्र-

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
  • ॐ नमो नारायणाय नम:
  • ॐ विष्णवे नम:।
  • ॐ हूं विष्णवे नम:।
  • ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
  • ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
  • श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

By Amit Gupta

Amit is a digital marketer by profession. He felt the need to publish hindi meaning of all shlokas and mantra, so that people can understand them properly and started Sanatan Pathshala Website.

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