माँ कालरात्रि

 

दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। नवरात्रि की पूजा में तंत्र साधना करने वाले लोग इस दिन काले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। अन्य आराधकों को बैंगनी,स्लेटी,नीला एवं आसमानी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है।

जानिए कौन है माँ कालरात्रि

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक रक्तबीज नाम का राक्षस था। मनुष्य के साथ देवता भी इससे परेशान थे।रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव बन जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को ज्ञात था कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं।

भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई।

मां कालरात्रि आराधना मंत्र-

‘ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

‘दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।

मां कालरात्रि का प्रिय भोग-

मां कालरात्रि को गुड़ व हलवे का भोग लगाना चाहिए, इससे वे प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

कालरात्रि माता की पूजा विधि-

मां कालरात्रि की पूजा के लिए सुबह चार से 6 बजे तक का समय उत्तम माना जाता है।
इस दिन प्रातः जल्दी स्नानादि करके मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
इसके बाद मां के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।
अब फल-फूल मिष्ठान आदि से विधिपूर्वक मां कालरात्रि का पूजन करें।
पूजा के समय मंत्र जाप करना चाहिए, तत्पश्चात मां कालरात्रि की आरती करनी चाहिए।
इस दिन काली चालीसा, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम आदि चीजों का पाठ करना चाहिए।
इसके अलावा सप्तमी की रात्रि में तिल के तेल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति भी जलानी चाहिए