मां शैलपुत्री

 

शैलपुत्रीवन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा देवी के मंडपों में पहले नवरात्र के दिन होती है। शैलपुत्री अपने अस्त्र त्रिशूल की भांति हमारे त्रीलक्ष्य (धर्म, अर्थ और मोक्ष) के साथ मनुष्य के मूलाधार चक्र पर सक्रिय बल है। मूलाधार में पूर्व जन्मों के कर्म और समस्त अच्छे-बुरे अनुभव संचित रहते हैं। यह चक्र कर्म सिद्धांत के अनुसार यह चक्र प्राणी का प्रारब्ध निर्धारित करता है, जो अनुत्रिक के आधार में स्थित तंत्र और योग साधना की चक्र व्यवस्था का प्रथम चक्र है। यही चक्र पशु और मनुष्य के बीच में लकीर खींचता है। यह मानव के अचेतन मन (Subconscious Mind) से जुड़ा है। इस चक्र का सांकेतिक प्रतीक चार दल का कमल अंतःकरण यानी मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार द्योतक हैं।ऐसा है मां का स्वरूपशैलपुत्री नंदी बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। यह वृषभ वाहन शिव का ही स्वरूप है। घोर तपस्चर्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव जंतुओं की रक्षक भी है। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल जो धर्म, अर्थ और मोक्ष के द्वारा संतुलन का प्रतीक है, शैलपुत्री के लक्ष्य को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करता है। बाएं हाथ में सुशोभित कमल-पुष्प कीचड़ यानी स्थूल जगत में रहकर उससे परे रहने का संकेत देता है। मनुष्य में प्रभु की अपार शक्ति समाहित है और शैलपुत्री उसका व्यक्त संकेत हैं। देह में यह शक्ति इस चक्र के आवरण में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रही है।इस बार 8 दिन का ही होगा शारदीय नवरात्र, जानिए कलश स्थापना का शुभ मुहूर्तऐसी है मां शैलपुत्री की शक्तिकभी प्रजापति दक्ष की कन्या सती के रूप में प्रकट शैलपुत्री मूलाधार मस्तिष्क से होते हुए सीधे ब्रह्मांड का प्रथम संपर्क सूत्र है। यदि देह में शैलपुत्री को जगा लिया जाए, तो संपूर्ण सृष्टि को नियंत्रित करने वाली शक्ति शनैः शनैः देह में प्रकट होने लगती हैं। फलस्वरूप व्यक्ति विराट ऊर्जा में समा कर मानव से महामानव के रूप में तब्दील हो जाता है।नवरात्रि में कलश बैठाते समय इस बातों का रखेंगे ख्याल तो जयंती होगी हरी भरीशक्ति प्रदान करती हैं माताशैलपुत्री की सक्रियता से मन और मस्तिष्क का विकास होने लगता है। अंतर्मन में उमंग और आनंद व्याप्त हो जाता है। इनका जागरण न होने से मनुष्य विषय-वासनाओं में लिप्त होकर सुस्त, स्वार्थी, आत्मकेंद्रित होकर थका-थका सा दिखाई देता है। शैलपुत्री मनुष्य के कायाकल्प के द्वारा सशक्त और परमहंस बनाने का प्रथम सूत्र है। स्वयं में ध्यान-भजन के द्वारा इनकी तलाश देह में काम को संतुलित करके बाहर से चट्टान की शक्ति प्रदान करती है। मानसिक स्थिरता देती है।

नवरात्रि का पहला दिन प्रतिपदा का होता है। इस दिन कलश पूजन के साथ मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। इस दिन मां की पूजा करते समय आराधक को लाल, गुलाबी, नारंगी एवं रानी रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने से लाभ मिलता है।